पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१३१

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विधवाश्रम करके व्याह कर दिया। मैंने समझा, तकदीर में जो होना लिखा था, वही हुआ। मैं चली गई। पीछे यहाँ से एकाएक आदमी दौड़ा गया और बुलाकर फिर ले आया। यहाँ आने पर पता लगा कि मेरे पति को पता लग गया था और वे पुलिस लेकर यहाँ आए थे, पर लौट गए। ये मुझसे एक लिखे हुए कागज पर दस्तखत कराना चाहते हैं, पर मैं नहीं करती। मैं वहाँ भी नहीं जाना चाहाती, जहाँ इन्होंने मेरा ब्याह किया था। मैं अपने धर जाना चाहती हूँ। इसीलिए इन्होंने मुझे बन्द कर रक्खा है। मुझे बन्द किए दस दिन हो गए। मैं खिड़की से नित्य राह चलतों को इशारे करती थी कि कोई छुड़ाए। आखिरकार पुलिस ने आकर हमें छुड़ाया ।" मैजिस्ट्रेट ने पूछा-तुम्हारे साथ भी कुछ गहना आदि था ? गोमती-जो हुजूर, मेरे पास दो हजार के लगभग गहना था, वह सब इन्होंने जमा करने के बहाने ले लिया । "अच्छी बात है।"-मैजिस्ट्रेट ने उसे बैठाकर कहा-"अब गवाहों को बुलाओ।" पुलिस-इन्सपेक्टर ने गवाही दी:- "मैं अमुक थाने में इन्सपेक्टर हूँ | अमुक नम्बर के कॉन्स्टे- बिल के कहने से मैंने आश्रम के मकान पर धावा मारा । ये लड़कियाँ ताले में बन्द मिली। तलाशी में यह नकदी, जेवर और कागजात मिले। इन्हें लड़कियों ने शिनाख्त से अपना बताया है। इसके बाद और भी दो-तीन गवाही लेकर मैजिस्ट्रेट ने कहा- अच्छा अभियुक्त क्या कहना चाहते हैं ?