पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२९

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विधवाश्रम छिपी रहो, पीछे स्टेशन पर आई। वहाँ यह आदमी गजपाल मुझे मिला। इसने मेरी सब कहानी सुनकर कहा कि तेरे बाप को मैं जानता हूँ। चल मैं तुझे वहाँ पहुँचा हूँ। यह मुके दिही ले आया और यहाँ आश्रम में रख दिया। “यहाँ भी वही हाल देखा। पर इस बार मैं अपने को न बचा सकी। इस गजपति ने सेरा घमं बिगाड़ दिया। यह रात- दिन वहीं रहता है और बिना इसकी इच्छा पूरी किए काई लड़की अपनी इच्छानुसार काम नहीं कर सकती! यह बला निठुर नर-पशु है, नित्य ही दो-चार शिकार पकड़ लाता है । डॉक्टर बुढ़ा घाघ है, बेटी-बेटी करके ही सब कुकर्म करता है। उस दिन मुझसे कहा कि मेरे यहाँ रोटी पकाने के लिए श्राजाना। जन गई ता बुरी-चुरी बातें कहने लगा। मैं वहाँ से अकेली ही भाग आई। अधिष्ठात्री देवी उनकी पुरानी चुडैल हैं। उन्होंने सब्ज बारा दिखाकर मुझे शादी करने को लाचार कर लिया। मैं राजी हो गई। गहने, कपड़े, रूपए मिलने की आशा थी। वह आदमी मेरठ के पास के किसी देहात का बनिया था। लोहे का काम करता था। उसकी औरत मर चुकी थी और उसे गर्मी की बीमारी हो गई थी। मुझे उससे बड़ी घृणा थो । पर वह मेरी बड़ी आवभगत करता था। यह बात तय हो गई थी कि गजपति अमुक दिन वहाँ जायगा और मौका पाकर उड़ा लाएगा। यही हुआ, और मैं फिर यहाँ लाई गई ! वह भी पाया, ममड़ा हुआ तो उसे डरा दिया कि तुमने लड़की को मार डालने की कोशिश की है, तुम पर फौजदारी चलेगी। बेचारा भाग गया। "फिर दूसरी जगह मेरा ब्याह कर दिया गया । और वहाँ से भी उसी भाँति भगा लाई गई। पर इस बार जिससे ब्याह