पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१०६

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चतुरसेन की कहानियाँ "तुम्हें अवश्य विवाह कराना चाहिए।" "मैं धर्म-काज में जीवन व्यतीत करना चाहती हूँ !" "तुम्हारा विकाइ किसी धर्मोपदेशक से करा दिया जा "पर यह सुझे पसन्द नहीं, मुझे विवाह से घृणा है। "यह तुम्हारी नादानी है।" "आप मेरे पढ़ने-लिखने का बन्दोबस्त कर दें।" "परन्तु यह विधवाश्रम है, कोई कन्या-पाठशाला नहं "आपने लिखा था कि पढ़ने का प्रबन्ध हो जायगा । "पर विवाह के बाद "विवाह के बाद आप क्या यहाँ रख सकगे ?" “यहाँ रखने हा से क्या-जो विवाह करेगा, वह पढ़ा "और यदि मैं विवाह न कह ?" "अवश्य करना पड़ेगा ?" "मैं विवाह नहीं करूंगी?" "कह चुका, अवश्य करना पड़ेगा " "तब मुझे चली जाने दीजिए, मैं यहाँ न रहूँगी।" “यह भी असम्भव है।" "असम्भव क्यों? "नियम है। "यह वो घोगामुश्ती है।" "तुम चाहे जो कुछ समझो।" "मैं यहाँ एक मिनिट भी नहीं रह सकती।" "तुम यहाँ से जा नहीं सकती।" “देखू कौन रोकता है। डॉक्टर ने सङ्कत किया । गजपति और ज