पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१००

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चतुरसेन की कहानियाँ उससे ऐसा प्रतीत होता था, मानो आप अभी रो पड़ेगे। शायद इसी चेष्टा के फल-स्वरूप आपका होठ नीचे को लटक गया था, और चेहरा कुछ लम्मा हो गया था। लेख को ठीक करा डॉटर जी बोले-'बस अब हिसाब में जो थोड़ी सी भूल है, उसे तुम ठीक कर करा लेना । परन्तु सुनो -कत हो नो अन्तरङ्ग मीटिङ्ग है, सब कागजात आज ही रात को तैयार और साफ हो जाने चाहिएँ। पीछे का बग्नेड़ा रहना ठीक नहीं। "बहुत अच्छा ! परन्तु वे दो सौ रुपए, जो कुन्ती की शादी में वसूल हुए हैं, किस मद में डाले जाय?" "किसी में भी नहीं, अभी उनकी बात छोड़ो, उनका हिसाब मैं पीछे दूंगा। तुम्हें अपना हक तो मिल गया न ?” "कहाँ, सिर्फ पच्चीस मिले हैं।" "तब यह ला गाँच और, यह हिसाब तो साफ हुआ। आप लोगों को भो तो इल विवाह का हिस्सा मिल गया है।" दोनों अन्य पुरुषों ने भी स्वीकृति दे दी। इस पर डॉक्टर जी कुछ कहना चाहते थे कि एक वृद्धा स्त्री ने द्वार में घुस कर मूर्ति-चतुष्टय को धरती में माथा टेक कर प्रणाम किया। गजपति ने कहा-माई, क्या है ? "महाशय जी ! मेरी यह फुफेरी बहिन की लड़की है, बेचारी बाल-विधवा है, न कोई आगे न पीछे। मैं अन्धी-धुन्धी बुढ़िया हूँ, इसकी कहाँ तक देख-भाल कर सकती हूँ। घर में इसका मन नहीं लगता । सदैव द्वार पर खड़ी रहती है। कहती हूँ-सधवाओं जैसा बनाव-सिङ्गार क्या इसको रुचता है ? पर यह एक नहीं सुनती। आपकी मैंने वारीफ सुनी है, खराक