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आज बड़ी कृतार्थता लग रही है, कि उस दिन मैंने खुदकुशी नहीं की लेकिन उस दिन मैं इस बात के कितने करीब पहुंचा था। मेरे पास उस वक्त जीने के लिए कोई कारण ही नहीं था। किसी व्यक्ति पर उसकी लैंगिकता के कारण जान देने की नौबत आए, यह बात समाज कैसे सहन कर सकता है?