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ऐसी कोई व्यक्ति हमारे परिचय की हो (खास करके घनिष्ठ हो) तो हम यह कहके दामन नहीं चुरा सकते की, 'मुझे मालूम नहीं, यही अच्छा हैं।' अगर उस व्यक्ति का सुख हम चाहते है, तो फिर इस विषय को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इस पर कहा जा सकता है की, ठीक है, इस बात का पता चलने न चलने से किसका क्या नुकसान होनेवाला है? इसी सवाल का जबाब ढूँढ़ने का प्रयास ही इस पुस्तक का उद्देश्य हैं। यह पुस्तक समलिंगी लोगों के लिए भी है। समलिंगी लड़के-लड़कियाँ उनके रिश्तों के बारे में बहुत सारी गलतफहमियाँ धराती हैं क्योंकि इस प्रकार के खुले, सुदृढ, स्वस्थ रिश्ते उन्होंने कहीं देखे नहीं होते। उसके बारेमें चर्चा, संवाद करने की, जानकारी हासिल करने की उचित जगहों का उन्हें पता नहीं होता। सिर्फ समलैंगिकता विषय को लेकर यह किताब लिखी गई है। वैसे लैंगिकता के अनेक पहलू हैं। उनमें से यह एक है। हम सबने मिलकर सोचने की बात यह है की, सिर्फ भिन्नलिंगी पहलू ही योग्य, सही है, यह जिद रखना कहाँ तक उचित है? यह किताब, समलिंगी लोगों का भावविश्व किस प्रकार का होता है, यह दर्शाने का एक प्रयास है। उस भावभंगिमा को शब्दरूप देने का यह एक छोटासा पहला पगा इच्छा है, एक सेन्सिटायझेशन प्रायमर की दृष्टि से इस किताब का उपयोग हो और इसी विचार से टेक्निकॅलिटीज को दूर रखा है। इस विषय की और जानकारी चाहनेवाले संदर्भ में दी गई किताबें जरूर पढ़ें। वहाँ दी गई संस्थाओ से संपर्क करें। भाषा संबंधी हो सकता है, कुछ वाचक इस किताब के कई शब्द , छह