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‘क्या हुआ?' - मैं। 'यह क्या है?' - माँ ने मेरे सामने वह 'होमो लव्ह' मॅगेझिन फेंका। क्या बोलू, मेरे समझ में नहीं आ रहा था। 'मेरे कमरे में तुमने कदम क्यों रखा?' - मैं चिल्लाया। पिताजी ने उठकर एक तमाचा चढाया। 'यह मॅगेझिन हमारे घरमें क्यों है?' मेरा चेहरा गरम हो गया था। गला रूँध गया था। समझ में नहीं आ रहा था, क्या करूँ? क्या बोलू? और उसी वक्त बहुत कुछ बोल देने को भी मन कर रहा था। 'मैं क्या पूछ रही हूँ?' - माँ 'जबान झड़ गई क्या तेरी?' - पिताजी । 'किसीने तुम्हें बहकाया तो नहीं है? देखो, घबराओ मत, सब कुछ कह डालो। हम उसे देख लेंगे।' - माँ मैंने ना कहने के लिए सिर्फ गर्दन हिलाई। 'अरे, फिर क्या कारण है? ऐसा मॅगेझिन तुम्हारे पास क्यों आया? कैसे आया?' - पिताजी। मेरी आँखे भरी हुई, गर्दन झुकी हुई। कह दिया, 'मुझे लड़के अच्छे लगते सुनकर माँ का मुँह खुला का खुला। पिताजी के चेहरे पर घिन। ३१ ... ...