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मंतव्य इस पुस्तक का उद्देश्य? जब से मुझे याद है, मेरे अड़ोस पड़ोस में, समलिंगी लोगों को हमेशा नफरत देखा गया हैं। इस विषय का अज्ञान, गलत फहमियाँ और ऐसे लोगों पर प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूप से बरता जानेवाला अन्याय, लोगों की नजर में, बोलने में, विचारो में, उनके सलूक में हमेशा झाँकते रहता हैं। मैं ‘समपथिक' नाम की पुरूष लैंगिक आरोग्य संस्था चला रहा हूँ। संस्था के कुछ उद्दिष्ट इस प्रकार है - 'गे' सपोर्ट ग्रुप, लैंगिकता के बारे में शिक्षा, लैंगिक शिक्षा, गुप्तरोग, एच.आय.व्ही/एडस् के संबंध में जानकारी देना तथा, लैंगिक आरोग्य के लिए एक हेल्पलाईन चलाना। मेरे घर के लोग, दोस्त आम तौरपर समलैंगिकता का विषय कभी छेड़ते नहीं। इस विषय पर बोलने की/कुछ सुनने की उनकी इच्छा नहीं होती। मुझे मालूम है, यह विषय सबको बैचेन करता हैं। इस विषय को लेकर लोगों में अज्ञान हैं। अज्ञान हैं इसलिए गलत फहमियाँ हैं। गलत फहमियाँ हैं, इसलिए डर हैं और समाज में गहराए हुए इस डर के कारण, समलिंगी समाज की झोली में हमेशा नफरत और तुच्छता, उपहास दान पड़ा है। इस विषय की जानकारी मिलती है, सिनेमा, नाटक, कहे जानेवाले चुटकुले, कुछ किताबें या कुछ लड़के/लड़कियों पर किए गए व्यंग इन माध्यमो सें। इसमें से बहुत सारी तीन