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न होता, तो मैं भी उस पर यकीन कर लेता। लेकिन मैंने उसे देखने के बारे में कुछ न कहा। उससे झगडा मोल लेने की हिम्मत नहीं होती। लगता है अगर उससे लडू तो वह मुझे छोड़ देगा। मेरा बॉयफ्रेंड किसी और के साथ है यह मैं देख नहीं सकता। इस बात से मुझे बहुत जलन हो रही है। आज मैने वो पोर्नोग्राफिक मॅगेझिन उससे ले लिया। घर लाकर, बेडरूम में अलमारी है उसके पीछे छुपा दिया है। कल उसने मुझसे सौ रूपये लिए। पीछले पैसे अभीतक वापस नहीं किए है। अलमारी में से चुटाकर मैं अनिकेत को पैसे देता रहता था। मैं उस वक्त इतना धोला-याला, अधपगला था, समझता था उसे पैसे देते रहने से वो मेरे साथ रहेगा। नही छोड़ेगा मुझे। लेकिन जल्द ही इस मामले में अक्ल ठिकाने आ गई। माँ ने फटकार दिया है। दो टूक बात कह दी है की यहाँ मुझे फोकट में खाना पिना नहीं मिलेगा। बढ़ती उमर के साथ मेरी जिम्मेदारी मैंने समझ लेनी चाहिए। पिताजी मेरे साथ एक शब्द भी नहीं बोलते। माँ की एक सहेली है जिसके पति का गराज है। आज माँ मुझे उस गराज में ले गई थी। वहा काम की बात हुई। उन्होने बताया पहले तीन महिनों तक तनख्वाह नहीं मिलेगी। लेकिन अनुभव तो मिलेगा। गाडियाँ धोने का काम है। आज से मैं काम पर जाने लगा। गाडी धोने में वैसे शर्म आती है। पिताजी भी नहीं चाहते की मैं यह काम करूँ। लेकिन माँ है, कुछ सुनने को तैयार ही नहीं। गराज में मुझे परेशानी होती है। वहाँ के लड़के मुझे सताते रहते हैं। छोटे-छोटे काम भी मैं नहीं कर सकता, कहकर मेरा मजाक उड़ाने रहते हैं। उनमें से दो हैं जिनके बारे में मुझे आकर्षण लगता है। एक है एकदम निकम्मा। उसकी तरफ देखते ही मुझे, न जाने क्यों जतीन याद आता है। दूसरा है राजू, वो एकदम भलामानस है। मेरी मदद करता है। कोई मुझे तंग करने लगा, तो उसे फटकारता है। गराज में काम करते करते मैं थक जाता हूँ। पूरा बदन दर्द करता है। अनंत चतुर्दशी के लिए मौसी, चाचा और चाची आए हैं। मैं तो पक गया हूँ इन लोगों से। चाचा के घर दो दिन भी जाओ तो चाची तबीयत खराब होने का नाटक ) २८ ... ...