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कुछ बातें करो उनसे। इस तरह की लापरवाही से पेश आना ठीक नहीं', वगैरा। मैंने झट से बोल दिया, 'तो उन्हें होटल में ठहरना था। क्यों आए हमारे घर?' मेहमान निकल गए और हमारे घर में खुब झगड़ा हुआ। मैंने माँ-पिताजी को गाली-गलौज सुनवाई। पिताजी गुस्सा हो गए और मुझे मारा। मेरा बाप मुझपर हाथ उठाता है- साला। अच्छा हुआ उनको मेरे जैसा बेटा हुआ। यही उनकी हैसियत है।' रिजल्ट आ गया। घरवालों को बड़ा धक्का लगा! पिताजी ने फिरसे मुझे पीटा। मुझपर हाथ उठाना आजकल उनके लिए रोज का काम हो गया है और मैं हूँ एक निगोड़ा चुपचाप मार खा लेता हूँ। अब मुझे रोना भी नहीं आता। इसमें माँ को बड़ी पीड़ा होती है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है, मेरा चालचलन ऐसा क्यों हो गया है? मैं क्यों इस तरह बदल गया हूँ। मैं बता भी तो नहीं सकता। आज शाम को उपर टेरेस पर गया। चौथा माला। टंकी पर चढ़कर खड़ा था। झुककर नीचे देखा। बस चार- पाँच सेकंड की ही तो बात है-सबकुछ खतम हो जाएगा। दो-चार सेकंड गिरकर नीचेतक जाने के लिए, एक दो सेकंड की असह्य वेदना और फिर घना अंध:कार। उधर लोग कहेंगे बारहवीं में फेल हो गया, इसी कारण जान दे दी बेचारे ने। एक पाँव आगे बढ़ाया। नीचे देखकर कुछ चक्कर-सा आने लगा। पाँव में कंपकंपी होने लगी। कुदने की हिम्मत जुट न रही थी। फिर पीछे हटा और झट से नीचे बैठ गया। खुदकुशी करने की भी हिम्मत मुझमें नहीं। यह कैसी जिंदगी है, लानत है मुझपर। आज बड़ी कृतार्थता लग रही है, कि उस दिन मैंने खुदकुशी नहीं की लेकिन उस दिन मैं इस बात के कितने करीब पहुंचा था। मेरे पास उस वक्त जीने के लिए कोई कारण ही व्यक्ति पर उसकी लैगिकता के कारण जान देने की नौबत आए, यह बात समाज कैसे सहन कर सकता है? मेरे जैसे कितने लड़के-लड़कियोंने इसी कारण खुदकुशी की होगी? ('आखीर उसे किस बात की कमी थी? नचिट्ठी, न खता क्या कारण था, समझ में ही नहीं आ रहा है। एक इन्सान के नाते, हमारे बच्चों को वह जैसे है, वैसे ही उनका स्वीकार अगर हम नहीं कर सकते तो फिर बाकी परवरिश व्यर्थ है। 'था। किसी ... २५ ...