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मैंने फोन किया, तो कभी ठीक तरह से जबाब भी नहीं देता। कुछ न कुछ बहाना बना के आने की बात टाल देता है। मतलब, जब वह चाहता है तभी हम मिलते हैं। लगने लगा है कि वो मेरा इस्तेमाल कर रहा है। आज मैंने मेरी यह भावना उससे कह दी। उसपर उसका तपाक से जबाब आया, मैंने कोई जबरदस्ती नहीं की है और झटसे निकल गया। मैं रोने लगा। समझ में नहीं आ रहा है मेरी क्या गलती हो रही है। जितना था उससे और डिप्रेशन में मैं डूब गया। मैं उसे बार बार फोन करता रहता हूँ। वह उधर से फोन पटक देता है। आज उससे वैशाली में मिलने का प्रयत्न किया, “मुझे तुमसे कुछ बात करनी है' मैंने कहा। 'तो फिर बोल न यही पे' उसने उत्तर दिया। क्या बोलूँ? और यहाँ, इस जगह? मुझे वो चाहिए और उसे यह बात पक्की मालूम है। इसीलिए इस तरह मुझे क्लेश दे रहा है। बेरहम है साला। भड़वा। ..... परसो मेरे मौसेरे भाई की शादी है। रिश्तेदार के शादी-ब्याह समारोह में मुझे तनिक भी इंटरेस्ट नहीं। शादी के लिए बाहरगाँव से मेहमान आने वाले हैं। उधर शादी के हॉल में जगह तंग है, इसलिए कुछ लोग हमारे घर ठहरने वाले हैं। मेहमान आनेवाले है, तो माँ पिछला पूरा हफ्ता घर ठीक-ठाक, साफ-सुथरा करने में लगी है। मेरा कमरा जब उसने समेटा, तब मैं घर नहीं था। मैंने खूब शोरगुल मचाया, लेकिन कोई फायदा नहीं। ये घरवाले प्रायव्हसी नाम की चीज जैसे समझते ही नहीं। आज मेहमान निकल गए। छुटकारा-सा लगा। उनमें से एक थी जो हर वक्त मेरी तरफ ही देखती रहती। उसका पूरा ध्यान मेरी तरफ ही लगा हुआ था। चार दिन से देख रहा था, हमेशा मुझसे हेलमेल करने की कोशिश में थी। कभी पेड़ा लाके देगी, कभी मेहंदी मुझे दिखाने के बहाने पास आएगी, कभी मेरे कपड़ों में इस्त्री करने का बहाना, लगातार कुछ न कुछ बहाने मेरे आसपास आती थी। मेरे साथ एक फोटो भी खिंचवाई। लग रहा था, कब यह डायन टलेगी। कितना इन्सेन्सिटीव था मैं। रिश्तेदार एक पूरा हफ्ता हमारे साथ रहे लेकिन इधर-उधर के दो-चार शब्द से ज्यादा उनसे बात नहीं की। माँ हल्की-हल्की सी आवाज में कहती रहती, 'अरे, २४ ...