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वह घटना आज भी मेरे आखों के सामने ज्यों की त्यों खड़ी है। कुछ करने की थोड़ी भी कोशिश मैंने उस वक्त नहीं की। गुमसुम देखता रह गया। और भगवान जाने, जतीन और उसके दोस्तीने इसमें क्या पुरुषार्थ दिखाया? क्या वह लड़का 'गे' था? मालूम नहीं। इस तरह के जनानी लड़कों को खूब परेशानी थुगतनी पड़ती है। मर्दाना बवि रखने के लिए घरवालों की, दोस्तों की तरफ से दबाव रहता है। कोई भी उनका पक्षधर नहीं होता। उनके इस स्वभाव के कारण उन्हें मार खानी पड़ती है, उड़ाया गया मजाक सहना पता है। हम सब चाहते है की बच्चे हो वो सिर्फ कस्टम मेडा नॉनस्टिरिओटिपीकल बच्चे कोई नहीं चाहता। दोष उन बच्चों का नहीं, हमारा है। हमारा एकाध इंटरसेक्स बच्चा हो गया, वोहम उसे अनाथाश्रम में पटक देंगे। गर्भ रहते ही अगर सेक्शुअल ओरिस्टेशन की कोई टेस्ट होती, तो हम समलिंगी बच्चों का गर्भपात ही कराएंगे। लैगिकता के वर्कशॉप में इस तरह की प्रतिक्रियाएँ मुझे हजारो चार सुनने को मिलती है। कभी-कभी मन में सवाल उठता है, क्या पालक बनने की हमारी हैसियत है? मुझे मुझसे ही घिन हो रही है और अब तो मुझे जतीन और बाकी लड़कों से भी नफरत हो रही है। मेरे लिए और बाकी सबके लिए मन में सिर्फ द्वेष की भावना उभरती है। मैं और बाकी लड़के सिर्फ देखते रहें। उस लड़के की मद्द के लिए हम में से एक भी आगे नहीं हुआ। कैसे मर्द हैं ये? फिर मेरे जैसे 'होमो' क्या बुरे है? कम-से-कम हम किसी को परेशान तो नहीं करते? अब जतीन की तरफ देखा नहीं जाता। लगता है एक बेनाम पत्र लिखकर प्रिन्सिपॉल को सब बता दूं लेकिन वो एकदम निकम्मा है। कुछ फायदा नहीं होगा। वह लड़का फिर से कॉलेज में दिखाई नहीं दिया। मुझे भय था, अगर उसने कम्प्लेंट की तो? लेकिन वो क्या कम्प्लेंट करे चाचा हो सकता है, जतीन ही उसपर उल्टा इल्जाम रख दे की ... २१...