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मालूम नहीं क्यो, लेकिन स्कूल के दिनों में मुझ में निडरता आई ही नहीं। दोस्त भी बहुत कम मिले। शायद हम खेल में अच्छे न हो तो दोस्ती बनाना मुश्किल है, या तुम्हारा अलगपन, बजाय खुदके, बाकी लोगही पहले सूघ लेते हैं? आज जतीन एक अश्लील किताब लाया था। उस टूटे फूटे मकान के पीछे उसका अड्डा जम गया। उस किताब में अधनंगी औरतों के चित्र थे। वैसे उनके ग्रुप में मैं कधी रहता नहीं। मालूम नहीं उस दिन कैसे उनके साथ था। सब लड़के लालची नजर में चित्र देख रहे थे। मुझे बहुत गंदा लगा। समझ में नहीं आता, इन्हें ऐसी अधनंगी औरतें क्यों इतनी अच्छी लगती हैं। मुझे तो उनमें जरा भी इंटरेस्ट नहीं लेकिन यह बात उन लड़कों को बताता, तो वे मुझे कच्चा खा जाते। मैंने भी शौकिन होने का नाटक किया लेकिन क्या मेरे ढोंग पर जतीन को शक हो गया है? उसने सबके सामने तपाक से मुझे पुछा, 'रोहित, क्यों बे, तेरा उठता है क्या?' मैं एकदम झेंप गया। सब खी खी करके हँसने लगे। शरम के मारे मेरा चेहरा गरम हो गया। मुँडी हिलाकर मैंने हाँ भरी। जतीन हमेशा लड़कियों के बॉल्स के बारे में बोलता रहता है। मराठी की टीचर के बारेमें तो वो बहुतही गंदी बाते करता है। उसे उसके साथ सेक्स करना है। दिमाग सटक गया है उसका। नहीं तो कौन इतना अक्ल का पुतला होगा, जिसे अपनी मराठी की टीचर के साथ सेक्स करने की इच्छा होगी? मुझे तो शक होता है की मैं इतना शर्मिंदा हो जाता हूँ, इसलिए मुझे और चिढ़ाने के लिए जानबुझकर वो मेरे सामने ऐसी गंदी बातें करता है। लड़कियों के बारे में मुझे कोई आकर्षण नहीं है, इस बात का अफसोस शुक्ल में बिल्कुल महसूस नहीं हुआ। इस स्थिती का अर्थ समज नहीं पाया। कल टीवी पर एक गाना देखा। मिलिंद उसमें क्या दिख रहा था, वाह! क्या बॉड़ी पायी है उसने। जतीन से भी कई गुना खुबसूरत लग रहा था। पूरा दिन मुझे मिलिंद ही याद आ रहा था। वह महल में आता है, मुझे उठाता है, ले जाता है। असल में मेरे यह विचार एकदम गलत हैं। मुझे जतीन के साथ एकनिष्ठ रहना चाहिए। जतीन १० ...