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मन्त्र


जान का मूल्य कौन दे सकता है ? यह एक पुण्य-कार्य था। सैकड़ों निराशों को उसके मन्त्रों ने जीवन-दान दे दिया था ; पर आज वह घर से कदम नहीं निकाल सका। यह खबर सुनकर भी सोने जा रहा है।

बुढ़िया ने कहा--तमाखू अँगीठी के पास रक्खी हुई है। उसके भी आज ढाई पैसे हो गये। देती ही न थी।

बुढ़िया यह कहकर लेटी। बूढ़े ने कुप्पी बुझाई, कुछ देर खड़ा रहा, फिर बैठ गया। अन्त को लेट गया ; पर यह खबर उसके हृदय पर बोझ की भाँति रक्खी हुई थी। उसे मालूम हो रहा था, उसकी कोई चीज खो गई है, जैसे सारे कपड़े गीले हो गये हैं, या पैरों में कीचड़ लगा हुआ है, जैसे कोई उसके मन में बैठा हुआ उसे घर से निकलने के लिये कुरेद रहा है। बुढ़िया जरा देर में खर्राटे लेने लगी। बूढ़े बातें करते-करते सोते हैं और जरा-सा खटका होते ही जागते हैं। तब भगत उठा, अपनी लकड़ी उठा ली, और धीरे से किवाड़ खोले।

बुढ़िया ने पूछा--कहाँ जाते हो ?

'कहीं नहीं, देखता था कितनी रात है।'

'अभी बहुत रात है, सो जाओ।'

'नींद नहीं आती'

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