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मन्त्र


माँ ने दौड़कर उसका सिर गोद में रख लिया और बिजली का टेबुल फैन लगा दिया गया।

डाक्टर साहब ने झुककर पूछा--कैलास कैसी तबीयत है ? कैलास ने धीरे से हाथ उठा दिया, पर कुछ बोल न सका ! मृणालिनी ने करुण-स्वर में कहा--क्या जड़ी कुछ असर न करेगी ? डाक्टर साहब ने सिर पकड़कर कहा--क्या बतलाऊँ, मैं इसकी बातों में आ गया। अब तो नश्तर से भी कुछ फायदा न होगा।

आध घण्टे तक यही हाल रहा। कैलास की दशा प्रति-क्षण बिगड़ती जाती थी। यहाँ तक कि उसकी आँखें पथरा गई, हाथ पाँव ठंडे हो गये, मुखकी कान्ति मलिन पड़ गई, नाड़ी का कहीं पता नहीं। मौत के सारे लक्षण दिखाई देने लगे। घर में कुहराम मच गया। मृणालिनी एक ओर सिर पीटने लगी, माँ अलग पछाड़ें खाने लगी। डाक्टर चड्ढा को मित्रों ने पकड़ लिया, नहीं तो वह नश्तर अपनी गरदन पर मार लेते।

एक महाशय बोले--कोई मंत्र झाड़नेवाला मिले, तो सम्भव है अब भी जान बच जाय।

एक मुसलमान सज्जन ने इसका समर्थन किया--अरे साहब, कब्र में पड़ी बुई लाशें जिन्दा हो गई हैं। ऐसे-ऐसे बाकमाल पड़े हुए हैं।

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