नरम पड़ते ही उसने सिर उठाकर कैलास की उँगली में जोर
से काटा और वहाँ से भागा। कैलास की उँगली से टप-टप
खून टपकने लगा। उसने जोर से उँगली दबा ली और अपने
कमरे की तरफ दौड़ा। वहाँ मेज़ की दराज में एक जड़ी
रक्खी हुई थी, जिसे पीसकर लगा देने से घातक विष भी रफू
हो जाता था। मित्रों में हलचल पड़ गई। बाहर महफ़िल में
भी खबर हुई। डाक्टर साहब घबड़ाकर दौड़े। फौरन् उँगली
की जड़ कसकर बाँधी गई और जड़ी पीसने के लिये दी
गई। डाक्टर साहब जड़ी के कायल न थे। वह उँगली का
डसा भाग नश्तर से काट देना चाहते थे ; मगर कैलास को
जड़ी पर पूर्ण विश्वास था। मृणालिनी प्यानो पर बैठी हुई
थी। यह खबर सुनते ही दौड़ी, और कैलास की उँगली से
टपकते हुए खून को रूमाल से पोंछने लगी। जड़ी पीसी जाने
लगी, पर उसी एक मिनट में कैलास की आँखें झपकने
लगीं ; ओठों पर पीलापन दौड़ने लगा। यहाँ तक कि वह
खड़ा न रह सका। फर्श पर बैठ गया। सारे मेहमान कमरे
में जमा हो गये। कोई कुछ कहता था, कोई कुछ। इतने में
जड़ी पिसकर आ गई। मृणालिनी ने उँगली पर लेप किया।
एक मिनट और बीता। कैलास की आँखें बन्द हो गई।
वह लेट गया और हाथ से पंखा झलने का इशारा किया।
पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/८८
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
मन्त्र
७७