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मन्त्र


था। इस पर हजारों रुपये फूँक चुका था। मृणालिनी कई बार आ चुकी थी ; पर कभी साँपों के देखने के लिये इतनी उत्सुक न हुई थी। कह नहीं सकते, आज उसकी उत्सुकता सचमुच जाग गई थी, या वह कैलास पर अपने अधिकार का प्रदर्शन करना चाहती थी ; पर उसका आग्रह बेमौक़ा था। उस कोठरी में कितनी भीड़ लग जायेगी, भीड़ को देखकर साँप कितने चौकेंगे और रात के समय उन्हें छेड़ा जाना कितना बुरा लगेगा, इन बातों का उसे ज़रा भी ध्यान न आया।

कैलास ने कहा--नहीं, कल जरूर दिखा दूंँगा। इस वक्त अच्छी तरह दिखा भी तो न सकूँगा, कमरे में तिल रखने की जगह भी न मिलेगी।

एक महाशय ने छेड़कर कहा--दिखा क्यों नहीं देते जी, ज़रा-सी बात के लिये इतना टालमटोल कर रहे हो। मिस गोविन्द, हर्गिज न मानना। देखें कैसे नहीं दिखाते !

दूसरे महाशय ने और रहा चढ़ाया--मिस गोविन्द इतनी सीधी और भोली हैं तभी आप इतना मिज़ाज करते हैं। दूसरी सुन्दरी होती, तो इसी बात पर बिगड़ खड़ी होती।

तीसरे साहब ने मजाक उड़ाया--अजी बोलना छोड़ देती। भला कोई बात है ! इस पर आपको दावा है कि मृणालिनी के लिये जान हाज़िर है।

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