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ज़िहाद


साथ जो उदासीनता दिखाई, उसका अब मरने के बाद प्रायश्चित्त करूँगी। यह धर्म पर मरनेवाला वीर था, धर्म को बेचनेवाला कायर नहीं। अगर तुममें अब भी कुछ शर्म और हया है, तो इसका क्रिया-कर्म करने में मेरी मदद करो और यदि तुम्हारे स्वामियों को यह भी पसन्द न हो, तो रहने दो, मैं खुद सब कुछ कर लूँगी।

पठानों के हृदय दर्द से तड़फ उठे। धर्मान्धता का प्रकोप शान्त हो गया। देखते-देखते वहाँ लकड़ियों का ढेर लग गया। धर्मदास ग्लानि से सिर झुकाये बैठा था और चारों पठान लकड़ियाँ काट रहे थे। चिता तैयार हुई और जिन निर्दय हाथों ने खज़ाँचन्द की जान ली थी, उन्हीं ने उसके शव को चिता पर रक्खा। ज्वाला प्रचण्ड हुई। अग्निदेव अपने अग्नि-मुख से उस धर्म-वीर का यश गा रहे थे!

पठानों ने खज़ाँचन्द की सारी जङ्गम सम्पत्ति लाकर श्यामा को दे दी। श्यामा ने वहीं एक छोटा-सा मकान बनवाया और वीर ख़ज़ाँचन्द की उपासना में जीवन के दिन काटने लगी। उसकी वृद्धा बुआ तो उसके साथ रह गई और सब लोग पठानों के साथ लौट गये ; क्योंकि अब

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