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हुत पुरानी बात है। हिन्दुओं का एक काफिला‌ अपने धर्म की रक्षा के लिए पश्चिमोत्तर के पर्वत-प्रदेश से‌ भागा चला आ रहा था। मुद्दतों से उस प्रान्त में हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ रहते चले आये थे। धार्मिक द्वेष का नाम न था। पठानों के जिरगे हमेशा लड़ते रहते थे। उनकी तलवारों पर कभी जङ्ग न लगने पाता था। बात-बात पर उनके दल संगठित हो जाते थे। शासन की कोई व्यवस्था न थी। हरएक जिरगे और कबीले की व्यवस्था अलग थी। आपस के झगड़ों को निपटाने का भी तलवार के सिवा और कोई साधन न था। जान का बदला

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