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स्तीफ़ा
दूसरा हाथ पड़ गया, तो शायद खोपड़ी खुल जाय। कान पर हाथ रखकर बोले--अब आप खुश हुआ ?
'फिर तो कभी किसी को गाली न दोगे ?'
'कभी नहीं।'
'अगर फिर कभी ऐसा किया, तो समझ लेना मैं कहीं बहुत दूर नहीं हूँ।'
'अब किसी को गाली न देगा।'
'अच्छी बात है अब मैं जाता हूँ, आज से मेरा स्तीफ़ा है। मैं कल स्तीफ़ा में यह लिख कर भेजूँगा कि तुमने मुझे गालियाँ दी ; इसलिये मैं नौकरी नहीं करना चाहता,समझ गये ?'
साहब--आप स्तीफ़ा क्यों देता है। हम तो बरखास्त नहीं करता।
फ़तहचंद--अव तुम-जैसे पाजी आदमी की मातहती न करूँगा।
यह कहते हुए फ़तहचंद कमरे से बाहर निकले और बड़े इतमिनान से घर चले। आज उन्हें सच्ची विजय की प्रसन्नता का अनुभव हुआ। उन्हें ऐसी खुशी कभी नहीं प्राप्त हुई थी। यही उनके जीवन की पहली जीत थी।
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