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स्तीफ़ा

फ़तहचंद ने चारपाई पर लेटते हुए कहा--नशे की सनक थी और क्या ? शैतान ने मुझे गालियाँ दीं, जलील किया, बस यही रट लगाये हुए था कि देर क्यों की। निर्दयी ने चपरासी से मेरा कान पकड़ने को कहा।

शरदा ने गुस्से में आकर कहा--तुमने एक जूता उतार कर दिया नहीं सुअर को ?

फ़तहचंद--चपरासी बहुत शरीफ है। उसने साफ कह दिया--हुज़र, मुझसे यह काम न होगा। मैंने भले आदमियों की इज्ज़त उतारने के लिए नौकरी नहीं की थी। वह उसी वक्त सलाम करके चला गया।

शारदा--यह बहादुरी है। तुमने उस साहब को क्यों नहीं फटकारा ?

फ़तहचंद--फटकारा क्यों नहीं-मैंने भी खूब सुनाई। वह छड़ी लेकर दौड़ा-मैंने भी जूता सँभाला। उसने मुझे कई छड़ियाँ जमाई-मैंने भी कई जूते लगाये।

शारदा ने खुश होकर कहा--सच ? इतना-सा मुँह हो गया होगा उसका।

फ़तहचंद--चेहरे पर झाड़ू-सी फिरी हुई थी।

शारदा--बड़ा अच्छा किया तुमने, और मारना चाहिए था। मैं होती, तो बिना जान लिए न छोड़ती।

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