यह पृष्ठ प्रमाणित है।
स्तीफ़ा


अगर वह उचककर उसके दो-चार थप्पड़ लगा देते, तो क्या होता--यही न कि साहब के ख़ानसामे, बहरे, सब उन पर पिल पड़ते और मारते-मारते बेदम कर देते। बाल-बच्चों के सिर पर जो कुछ पड़ती-पड़ती। साहब को इतना तो मालूम हो जाता कि किसी गरीब को बेगुनाह जलील करना आसान नहीं। आखिर आज मैं मर जाऊँ तो क्या हो ? तब कौन मेरे बच्चों का पालन करेगा ? तब उनके सिर जो कुछ पड़ेगी वह आज ही पड़ जाती, तो क्या हर्ज़ था।

इस अंतिम विचार ने फ़तहचंद के हृदय में इतना जोश भर दिया कि वह लौट पड़े और साहब से ज़िल्लत का बदला लेने के लिए दो-चार कदम चले। मगर फिर ख्याल आया, आखिर जो कुछ जिल्लत होनी थी, वह तो हो ही ली। कौन जाने बँगला पर हो या क्लब चला गया हो। उसी समय उन्हें शारदा की बेकसी और बच्चों का बिना बाप के हो जाने का ख्याल भी आ गया। फिर लौटे और घर चले।

घर में जाते ही शारदा ने पूछा--किस लिये बुलाया था, बड़ी देर हो गई ?

३३