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स्तीफ़ा


बोला-तुम सुअर, गुस्ताखी करता है ? जाकर आफ़िस से फाइल लाओ।

फ़तहचंद ने कान सहलाते हुए कहा--कौन-सा फाइल लाऊँ हुज़ूर !

साहब--फ़ाइल-फ़ाइल और कौन-सा फ़ाइल ? तुम बहरा है, सुनता नहीं, हम फ़ाइल माँगता है !

फतहचंद ने किसी तरह दिलेर होकर कहा--आप कौन-सा फाइल माँगते हैं ?

साहब--वही फ़ाइल जो हम माँगता है। वही फ़ाइल लाओ। अभी लाओ!

बेचारे फ़तहचंद को अब और कुछ पूछने की हिम्मत न हुई। साहब बहादुर एक तो यों ही तेज़ मिज़ाज थे, इस पर हुकूमत का घमंड और सबसे बढ़कर शराब का नशा। हंटर लेकर पिल पड़ते, तो बेचारे क्या कर लेते। चुपके से दफ्तर की तरफ चल पड़े।

साहब ने कहा--दौड़कर जाओ-दौड़ो।

फ़तहचंद ने कहा--हुज़ूर, मुझसे दौड़ा नहीं जाता।

साहब--ओ तुम बहुत सुस्त हो गया है। हम तुमको दौड़ना सिखायेगा। दौड़ो (पीछे से धक्का देकर) तुम अब भी नहीं दौड़ेगा ?

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