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स्तीफ़ा

फ़तहचंद ने खून का घूंट पीकर कहा--हुजूर, मुझे दस साल काम करते हो गये, कभी.........।

साहब--चुप रह, सुअर, हम कहता है अपना कान पकड़ो।

फ़तहचंद--जब मैंने कोई क़ुसूर किया हो ?

साहब--चपरासी ! इस सुअर का कान पकड़ो।

चपरासी ने दबी ज़बान से कहा--हुजूर, यह भी मेरे अफ़सर हैं, मैं इनका कान कैसे पकड़ूँ !

साहब--हम कहता है इसका कान पकड़ो, नहीं हम तुमको हंटरों से मारेगा।

चपरासी--हुजूर, मैं यहाँ नौकरी करने आया हूँ, मार खाने नहीं। मैं भी इज्जतदार आदमी हूँ। हुजूर अपनी नौकरी ले लें। आप जो हुकुम दें वह बजा लाने को हाज़िर हूँ; लेकिन‌ किसी की इज्जत नहीं बिगाड़ सकता। नौकरी तो चार दिन की है। चार दिन के लिए क्यों ज़माने-भर से बिगाड़ करें ?

साहब अब क्रोध को न बरदाश्त कर सके। हंटर लेकर दौड़े। चपरासी ने देखा यहाँ खड़े रहने में खैरियत नहीं है, तो भाग खड़ा हुआ। फ़तहचंद अभी तक चुप-चाप खड़े थे। साहब चपरासी को न पाकर उनके पास आया और उनके दोनों कान पकड़ कर हिला दिया।