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कप्तान साहब


दशा हुई। लाख बुरा है, है तो अपना लड़का ही। खानदान की निशानी तो है, मरूँगा तो चार आँसू तो बहायेगा, दो चिल्लू पानी तो देगा। हाय ! मैंने उसके साथ कभी प्रेम का व्यवहार नहीं किया। जरा भी शरारत करता, तो यमदूत की भाँति उसकी गर्दन पर सवार हो जाता। एक बार रसोई में बिना पैर धोये चले जाने के दंड में मैंने उसे उलटा लटका दिया था। कितनी बार केवल ज़ोर से बोलने पर मैंने उसे तमाचे लगाये। पुत्र-सा रत्न पाकर मैंने उसका आदर न किया। यह उसी का दंड है। जहाँ प्रेम का बंधन शिथिल हो, वहाँ परिवार की रक्षा कैसे हो सकती है !

सबेरा हुआ। आशा का सूर्य निकला। आज उसकी रश्मियाँ कितनी कोमल और मधुर थीं, वायु कितनी सुखद, आकाश कितना मनोहर, वृक्ष कितने हरे-भरे, पक्षियों का कल-रव कितना मीठा। सारी प्रकृति आशा के रंग में रंगी हुई थी। पर भक्तसिंह के लिए चारों ओर घोर अन्धकार था।

जेल का अफसर आया। कैदी एक पंक्ति में खड़े हुए। अफसर एक-एक का नाम लेकर रिहाई का परवाना देने

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