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कप्तान साहब


उसने लिफ़ाफे को फिर निकाला। उसमें कुल २००) के नोट थे। दो सौ रुपए में, दूध की दूकान खूब चल सकती है। आखिर मुरारी की दूकान में दो-चार कढ़ाव और दो-चार पीतल के थालों के सिवा और क्या है ? लेकिन कितने ठाठ से रहता है। रुपयों की चरस उड़ा देता है। एक-एक दाँव पर दस-दस रुपए रख देता है। नफ़ा न होता, तो यह ठाठ कहाँ से निभता। इस आनन्द-कल्पना में वह इतना मग्न हुआ कि उसका मन उसके क़ाबू से बाहर हो गया, जैसे प्रवाह में किसी के पाँव उखड़ जायँ और वह लहरों में बह जाय।

उसी दिन शाम को वह बम्बई चल दिया। दूसरे ही दिन मुंशी भक्तसिंह पर गबन का मुकदमा दायर हो गया।

बम्बई के किले के मैदान में बैंड बज रहा था और राजपूत रेजिमेंट के सजीले सुन्दर जवान क़वायद कर रहे थे। जिस प्रकार हवा बादलों को नये-नये रूप में बनाती और बिगाड़ती है, उसी भाँति सेना का नायक सैनिकों को नये-नये रूप में बना और बिगाड़ रहा था।

जब क़वायद खत्म हो गई, तो एक छरहरे डील का युवक नायक के सामने आकर खड़ा हो गया। नायक ने