मैंने बड़े साहब के नाम एक पत्र लिखकर सब हाल बता दिया, और लाश पाने के लिये दरख्वास्त की। उसी समय साहब के यहाँ से स्वीकृति आ गई।
एक पत्र लिखकर मेजर साहब को भी बुलवाया।
मेजर साहब ने आकर कहा--क्या बात है असद ? इतनी जल्दी आने के लिये क्यों लिखा ?
मैंने हँसते हुए कहा--मेजर साहब, मेरा नाम असद नहीं रहा, मेरा असली नाम है नाज़िर।
मेजर साहब ने साश्चर्य मेरी ओर देखते हुए कहा--रात-भर में तुम पागल तो नहीं हो गये ?
मैंने हँसते हुए कहा--नहीं, सरदार साहब, अभी और सुनिये। तूरया मेरी सगी बहन है, और जिसे कल मैंने मारा, वह मेरा बाप था।
सरदार साहब मेरी वात सुनकर मानो आकाश से गिर पड़े। उनकी आँखें कपाल पर चढ़ गई। उन्होंने कहा--क्यों असद, तुम मुझे भी पागल कर डालोगे ?
मैंने सरदार साहब का हाथ पकड़कर कहा--आइये,तूरया के मुँह से ही सब हाल सुन लीजिये। तूरया मेरे यहाँ बैठी हुई आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
सरदार साहब सकते की हालत में मेरे पीछे-पीछे चले।