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फ़ातिहा


मरा नहीं, जिन्दा है। एक दिन ज़रूर तू हम लोगों से मिलेगा।

तूरया की बात पर अब मुझे विश्वास हो चला था। न-जाने कौन मेरे हृदय में बैठा हुआ कह रहा था, कि तूरया जो कहती है, ठीक है। मैंने एक लम्बी साँस लेकर कहा--क्यों तूरया, मैंने जिसे आज मारा है, वह हम लोगों का बाप था ?

तूरया के मुँह पर शोक का एक छोटा-सा बादल घिर आया। उसने बड़े ही दुःखपूर्ण स्वर में कहा--हाँ नाज़िर, वह अभागा हमारा बाप ही था। कौन जानता था कि वह अपने प्यारे लड़के के हाथों हलाल होगा।

फिर सान्त्वना-पूर्ण स्वर में बोली--लेकिन नाज़िर, तूने तो अनजान में यह काम किया है। बाप के मरने से मैं बिल्कुल अकेली हो गई थी ; लेकिन अब तुझे पाकर मैं बाप के रंज को भूल जाऊँगी। नाज़िर, तू रंज न कर। तुझे क्या मालूम था कि कौन तेरा बाप है और कौन तेरी माँ है ! देख, मैं ही तुझे मारने के लिये आई थी, तुझे मार डालती ; लेकिन खुदा की मेहरबानी से मैंने अपना खानदानी निशान देख लिया। खुदा की ऐसी ही मरजी थी।

तूरया से मालूम हुआ कि मेरे बाप का नाम हैदरखाँ

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