और तेरी होकर रहती। तेरे लिये मैंने बाप, घर, सब कुछ छोड़ दिया था ; लेकिन तू झूठा है, मक्कार है। तू अब अपनी बीबी के नाम को रो, मैं आज से तेरे नाम को रोऊँगी। यह कहकर वह तेज़ी से नीचे चली गई।
अब मैं अपनी स्त्री के पास पहुँचा। छुरा ठीक हृदय में लगा था। एक ही वार ने उसका काम तमाम कर दिया था। डाक्टर बुलवाया ; लेकिन वह मर चुकी थी।
कहते-कहते सरदार साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने अपनी भीगी हुई आँखों को पोंछकर कहा--असदखाँ, मुझे स्वप्न में भी अनुमान न था कि तूरया इतनी पिशाच- हृदय हो सकेगी। अगर मैं पहले उसे पहचान लेता, तो यह आफ़त न आने पाती ; लेकिन कमरे में अन्धकार था, और इसके अतिरिक्त मैं उसकी ओर से निराश हो चुका था।
तब से फिर कभी तूरया नहीं आई। अब जब कभी मुझे देखती है, तो मेरी ओर देखकर नागिन की भाँति फुफकारती हुई चली जाती है। इसे देखकर मेरा हृदय काँपने लगता है और मैं अवश हो जाता हूँ। कई बार कोशिश की, मैं इसे पकड़वा दूँ; लेकिन उसे देखकर मैं बिल्कुल निकम्मा हो जाता हूँ। हाथ-पैर बेक़ाबू हो जाते हैं, मेरी सारी वीरता हवा हो जाती है।