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फ़ातिहा

मेरी स्त्री भी मेरे साथ ही कमरे के भीतर आई थी। वह मूँगे उठाकर देखने लगी। उस काबुली स्त्री ने पूछा--सरदार साहब, यह कौन है आपकी !

मैंने उत्तर दिया--मेरी स्त्री है, और कौन है।

काबुली स्त्री ने कहा--आपकी स्त्री तो मर चुकी थी, क्या आपने दूसरा विवाह किया है ?

मैंने रोषपूर्ण स्वर में कहा--चुप बेवकूफ़ कहीं की, तू मर गई होगी।

मेरी स्त्री पश्तो नहीं जानती थी, वह तन्मय होकर मूँगे देख रही थी।

किन्तु मेरी बात सुनकर न-मालूम क्यों काबुली औरत की आँखें चमकने लगीं। उसने बड़े ही तीव्र स्वर में कहा--हाँ, बेवकूफ़ न होती, तो तुम्हें छोड़ कैसे देती ? दोज़ख़ी पिल्ले, मुझसे झूठ बोला था। ले, अगर तेरी स्त्री तब न मरी थी, तो अब मर गई !

कहते-कहते शेरनी की तरह लपककर उसने एक तेज़ छुरा मेरी स्त्री की छाती में घुसेड़ दिया। मैं उसे रोकने के लिये आगे बढ़ा ; लेकिन वह कूदकर आँगन में चली गई और बोली--अब पहचान ले, मैं तूरया हूँ। मैं आज तेरे घर में रहने के लिये आई थी। मैं तुझसे विवाह करती

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