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फ़ातिहा

मैंने अपने घर का पता बता दिया। उसने कहा--उस जगह मैं तो कई बार हो आई हूँ। बाज़ार से सौदा लेने मैं अक्सर जाती हूँ, अब जब जाऊँगी, तो तुम्हारे बच्चों की भी खबर ले आऊँगी।

मैंने सशंकित हृदय से पूछा--कब जाओगी ?

उसने कुछ सोचकर कहा--उस जुमेरात को जाऊँगी। अच्छा, तुम वही गीत गाओ।

मैंने आज बड़ी उमंग और उत्साह से गाना शुरू किया। मैंने आज देखा कि उसका असर तूरया पर कैसा पड़ता है। उसका शरीर काँपने लगा, आँखें डबडबा आई, गाल पीले पड़ गये और वह काँपती हुई बैठ गई। उसकी दशा देखकर मैंने दूने उत्साह से गाना शुरू किया और अन्त में कहा--तूरया, अगर मैं मारा जाऊँ, तो मेरे बच्चों को मेरे मरने की खबर दे देना।

मेरी बात का पूरा असर पड़ा। तूरया ने भर्राए हुए स्वर में कहा--क़ैदी, तुम मरोगे नहीं। मैं तुम्हारे बच्चों के लिये तुम्हें छोड़ दूँगी।

मैंने निराश होकर कहा--तूरया तुम्हारे छोड़ देने से भी मैं बच नहीं सकता। इस जंगल में मैं भटक-भटक कर मर जाऊँगा, और फिर तो तुम पर भी मुसीबत

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