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फ़ातिहा

तूरया ने सान्त्वना-पूर्ण स्वर में कहा--अच्छा तुम गाओ, मैं कल तुम्हें मरने न दूंँगी।

मैंने गाना शुरू किया। जाते समय तूरया ने पूछा--क़ैदी, तुम कटहरे में रहना पसन्द करते हो ?

मैंने सहर्ष उत्तर दिया--हाँ, किसी तरह इस नरक से तो छुटकारा मिले।

तूरया ने कहा--अच्छा, कल मैं अब्बा से कहूँगी।

दूसरे ही दिन मुझे उस अन्धकूप से बाहर निकाला गया। मेरे दोनों पैर दो मोटी शहतीरों के छेदों में बन्द कर दिए गये और वह काठ की ही कीलों से प्राकृतिक गड्ढों में कस दिये गए।

सरदार ने मेरे पास आकर कहा--क़ैदी, पन्द्रह दिन की अवधि और दी जाती है, इसके बाद तुम्हारी गर्दन तन से अलग कर दी जायगी। आज दूसरा खत अपने घर को लिखो। अगर ईद तक रुपया न आया, तो तुम्हीं को हलाल किया जायगा।

मैंने दूसरा पत्र लिखकर दे दिया।

सरदार के जाने के बाद तूरया आई। यह वही रमणी थी जो अभी गई है। यही उस सरदार की लड़की थी। यही मेरा गाना सुनती थी और इसी ने सिफारिश करके मेरी जान बचाई थी।

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