मेरे छुड़ाने के लिये रुपया न भेजा। ज्यों-ज्यों दिन बीतते
जाते, मैं अपने जीवन से निराश होता जाता।
ठीक एक महीने बाद सरदार ने आकर कहा--क़ैदी, अगर कल तक रुपया न आवेगा, तो तुम मार डाले जाओगे। मैं अब रोटियाँ नहीं खिला सकता।
मुझे जीवन की कुछ आशा न रही। उस दिन न मुझसे खाया गया और न कुछ पिया ही गया। रात हुई, फिर रोटियाँ फेंक दी गई ; लेकिन खाने की इच्छा नहीं हुई।
निश्चित समय पर तूरया ने आकर कहा--क़ैदी, गाना गाओ।
उस दिन मुझे कुछ अच्छा न लगता था। मैं चुप रहा।
तूरया ने फिर कहा--क़ैदी, क्या सो गया ?
मैंने बड़े ही मलिन स्वर में कहा--नहीं, आज से सोकर क्या करूँ, कल ऐसा सोऊँगा कि फिर जागना न पड़ेगा।
तूरया ने प्रश्न किया--क्यों, क्या सरकार रुपया न भेजेगी?
मैंने उत्तर दिया--भेजेगी तो, लेकिन कल तो मैं मार डाला जाऊँगा, मेरे मरने के बाद रुपया भी आया, तो मेरे किस काम का!
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