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फ़ातिहा

फिर मेरी तलाशी ली गई, और इस दफे सब कपड़े उतरवा

लिये गए, केवल पायजामा रह गया। सामने एक बड़ा-सा शिलाखण्ड रक्खा हुआ था। सब लोगों ने मिलकर उसे हटाया और मुझे उसी ओर ले चले। मेरी आत्मा काँप उठी। यह तो ज़िन्दा कब्र में डाल देंगे। मैंने बड़ी ही वेदना-पूर्ण दृष्टि से सरदार की ओर देखकर कहा--सरदार, सरकार तुम्हें रुपया देगी। मुझे मारो नहीं।

सरदार ने हँसकर कहा--तुम्हें मारता कौन है, कैद किया जाता है। इस घर में बन्द रहोगे, जब रुपया आ जायगा, छोड़ दिये जाओगे।

सरदार की बात सुनकर मेरे प्राण-में-प्राण आये। सरदार ने मेरी पाकेटबुक और पेंसिल सामने रखते हुए कहा--लो, इसमें लिख दो। अगर एक पैसा भी कम आया, तो तुम्हारी जान की खैर नहीं।

मैंने कमिश्नर साहब के नाम एक पत्र लिखकर दे दिया। उन लोगों ने मुझे उसी अन्ध-कूप में लटका दिया और रस्सी खींच ली।

सरदार साहब ने एक लम्बी साँस ली और कहना शुरू किया--असदखाँ, जिस समय मैं उस कूए में लटकाया

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