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फ़ातिहा

असदखाँ ने पूछा--सरदार साहब, वह गीत क्या था ?

सरदार साहब ने कहा--उस गीत का भाव याद है। भाव यह है कि एक अफ्रीदी जा रहा है, तो उसकी स्त्री कहती है--कहाँ जाते हो ?

युवक उत्तर देता है--जाते हैं तुम्हारे लिये रोटी और कपड़ा लाने।

स्त्री पूछती है--और कुछ अपने बच्चों के लिये नहीं लाओगे ?

युवक उत्तर देता है--बच्चे के लिये बंदूक लाऊँगा, ताकि जब वह बड़ा हो, तो वह भी लड़े और अपनी प्रेमिका के लिये रोटी और कपड़ा ला सके।

स्त्री कहती है--यह तो कहो, कब आओगे ?

युवक उत्तर देता है--आऊँगा तभी, जब कुछ जीत लाऊँगा, नहीं तो वहीं मर जाऊँगा।

स्त्री कहती है--शाबास, जाओ, तुम वीर हो, तुम ज़रूर सफ़ल होगे।

गीत सुनकर मैं मुग्ध हो गया। गीत समाप्त होते-होते हम लोग भी रुक गए। मेरी आँखें खोली गई। सामने बड़ा सा मैदान था और चारों ओर गुफ़ाएँ बनी हुई थीं, जो उन्हीं लोगों के रहने की जगह थी।

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