रोटियाँ और कपड़े थे। मेरी भी तलाशी ली गई। मेरे
पास एक छः फायर का तमंचा था। तमंचा पाकर सरदार उछल पड़ा, और उसे फिरा-फिराकर देखने लगा। वहीं पर उसी समय हिस्सा-बाँट शुरू हो गया। बराबर-बराबर का हिस्सा लगा; लेकिन मेरा रिवालवर उसमें नहीं शामिल किया गया। वह सरदार साहब की ख़ास चीज़ थी।
थोड़ी देर विश्राम करने के बाद, फिर यात्रा शुरू हुई। इस बार मेरे पैर खोल दिये गये और साथ-साथ चलने को कहा--मेरी आँखों पर पट्टी भी बाँध दी गई, ताकि मैं रास्ता न देख सकूँ। मेरे हाथ रस्सी से बँधे हुए थे, और उसका एक सिरा एक अफ्रीदी के हाथ में था।
चलते-चलते मेरे पैर दुखने लगे; लेकिन उनकी मंजिल पूरी न हुई। सिर पर जेठ का सूरज चमक रहा था, पैर जले जा रहे थे, प्यास से गला सूखा जा रहा था; लेकिन वे बराबर चले जा रहे थे। वे आपस में बातें करते जाते थे; लेकिन अब मैं उनकी एक बात भी न समझ पाता। कभी-कभी एकआध शब्द तो समझ जाता; लेकिन बहुत अंशों में मैं कुछ भी न समझ पाता था। वे लोग इस समय अपनी विजय पर प्रसन्न थे, और एक अफ्रीदी ने अपनी भाषा में एक गीत गाना शुरू किया। गीत बड़ा ही अच्छा था।