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फ़ातिहा


इयाँ सामने आई ; लेकिन मैंने उनकी ज़रा भी परवाह न की और धीरे-धीरे उन सब पर विजय पाई। सबसे पहले यहाँ आकर मैंने पश्तो सीखना शुरू किया। पश्तो के बाद और भी ज़बानें सीखीं, यहाँ तक कि मैं उनको बड़ी आसानी और मुहाविरों के साथ बोलने लगा ; फिर इसके बाद कई‌ आदमियों की टोलियाँ बनाकर देश का अन्तर्भाग भी छान डाला। इस पड़ताल में कई बार मैं मरते-मरते बचा ; किन्तु सब कठिनाइयाँ झेलते हुए मैं यहाँ पर सकुशल रहने लगा। उस ज़माने में मेरे हाथ से ऐसे-ऐसे काम हो गये, जिनसे सरकार में मेरी बड़ी नामवरी और प्रतीष्ठा भी हो गई। एक बार कर्नल हैमिलटन की मेम-साहब को मैं अकेले छुड़ा लाया था, और कितने ही देशी आदमियों और औरतों के प्राण मैंने बचाये हैं। यहाँ पर आने के तीन साल बाद से मेरी कहानी आरम्भ होती है।

एक रात को मैं अपने 'कैम्प' में लेटा हुआ था। अफ्रीदियों से लड़ाई हो रही थी। दिन के थके-माँदे सैनिक गा़फिल पड़े हुए थे। कैम्प में सन्नाटा था। लेटे-लेटे मुझे भी नींद आ गई। जब मेरी नींद खुली तो देखा, कि छाती पर एक अफ्रीदी--जिसकी आयु मेरी आयु से लगभग दूनी होगी--सवार है और मेरी छाती में छुरा घुसेड़ने ही वाला

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