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फ़ातिहा


ओर देखा और फिर जमीन पर थूक दिया, और फिर मेरी ओर देखती हुई धीरे-धीरे दूसरी ओर चली गई।

रमणी को जाते देखकर सरदार साहब की जान में जान आई। मेरे सिर पर से भी एक बोझ हट गया।

मैंने सरदार साहब से पूछा--क्यों, क्या आप इसे जानते हैं ?

सरदार साहब ने एक गहरी ठंडी साँस लेकर कहा--हाँ, बखूबी। एक समय था, जब यह मुझपर जान देती थी और वास्तव में अपनी जान पर खेलकर मेरी रक्षा भी की थी, लेकिन अब इसको मेरी सूरत से नफ़रत है। इसी ने मेरी स्त्री की हत्या की है। इसे जब कभी देखता हूँ, मेरे होश-हवास काफ़ूर हो जाते हैं, और वही भयानक दृश्य मेरी आँखों के सामने नाचने लगता है।

मैंने भय-विह्वल स्वर में पूछा--सरदार साहब, उसने मेरी ओर भी तो बड़ी भयानक दृष्टि से देखा था। न-मालूम क्यों मेरे भी रोएँ खड़े हो गये थे।

सरदार साहब ने सिर हिलाते हुए बड़ी गम्भीरता से कहा--असदखाँ, तुम भी होशियार रहो। शायद इस बूढ़े अफ्रीदी से इसका भी सम्पर्क है। मुमकिन हो यह उसका भाई या बाप हो। तुम्हारी ओर उसका देखना कोई मानी रखता है। बड़ी ही भयानक स्त्री है।

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