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रकारी अनाथालय से निकालकर मैं सीधा फ़ौज में भरती किया गया। मेरा शरीर हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ था। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा मेरे हाथ-पैर कहीं लम्बे और स्नायु-युक्त थे। मेरी लम्बाई पूरी छः फीट नौ इंच थी। पलटन में मैं 'देव' के नाम से विख्यात था। जब से मैं फ़ौज में भरती हुआ, तब से मेरी किस्मत ने भी पलटा खाना शुरू किया। और मेरे हाथ से कई ऐसे काम हुए, जिनसे प्रतिष्ठा के साथ-साथ मेरी आय भी बढ़ती गई। पलटन का हर-एक जवान मुझे जानता था। मेजर सरदार हिम्मतसिंह की कृपा मेरे ऊपर बहुत थी ; क्योंकि मैंने एक बार उनकी प्राण-रक्षा की थी। इसके अतिरिक्त न-जाने क्यों उनको देखकर

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