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बिगाड़ का मूल विवाद.
 


व्हैयो ताहि कहो कैसे पीजै॥ कह गिरधर कबिराय कच्छ मच्छ न सकुचाई॥ बड़ो फ़जीहत चार भयो नदियन को साईं॥

"बस अब तुम यहां से चल दो. ऐसे बाज़ारू आदमियों का यहां कुछ काम नहीं है” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“मैंने किसी अमीर के लड़के को बहका कर बदचलनी सिखाई है या किसी अमीर के लड़के को भोगविलास में डाल कर उसकी दौलत ठग ली जो तुम मुझे बाज़ारू आदमी बताते हो?"

"तुम कपड़ा बेचने आए हो या झगड़ा करने आये हो?" मुन्शी चुन्नीलाल पूछने लगे.

"न मैं कपड़ा बेचने आया न मैं झगड़ा करने आया. मेला अपना रुपया वसूल करने आया हूं मेरा रुपया मेरी झोली में डालिये फिर मैं यहां क्षण भर न ठहरूँगा."

"नहीं जी, तुमको ज़बरदस्ती यहां ठहरने का कुछ अखत्यार नहीं है रुपये का दावा हो तो जाकर अदालत में नालिश करो." मास्टर शिंभूदयाल बोले.

"तुमलोग अपनी गली के शेर हो. यहां चाहे जो कह लो परंतु अदालत में तुम्हारी गीदड़भपकी नहीं चल सकती. तुम नहीं जानते कि ज्यादा घिसने पर चंदन से भी आग निकलती है. अच्छे आदमी को ख़ातर शिष्टाचारी से चाहे जितना दबा लो परतु अभिमान और धमकी से वह कभी नहीं दबता."

"तो क्या तुम हमको इन बातों से दबा लोगे?” लाला मदन मोहन ने त्योरी चढाकर कहा.

"नहीं साहब मेरा क्या मक़दूर है? मैं गरीब, आप अमीर.