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सुखदु:ख.
 


है उसके छूने की किसको सामर्थ्य है? आपने सुना होगा कि:- "महाराज रामचन्द्रजी को राजतिलक के समय चौदह वर्ष का वनवास हुआ उस समय उनके मुख पर उदासी के बदले प्रसन्नता चमकने लगी.

“इंगलैंड की गद्दी बाबत एलीजाबेथ और मेरी के बीच विवाद हो रहा था उस समय लेडी जेन ग्रे को उसके पिता, पति और स्वसुर ने गद्दी पर बिठाना चाहा परंतु उसको राज का लोभ न था वह होशियार, विद्वान और धर्मात्मा स्त्री थी. उसने उनको समझाया कि "निस्बत मेरी और एलिजाबेथ का ज्यादा हक़ है और इस काम में तरह-तरह के बखेड़े उठने की संभावना है. मैं अपनी वर्तमान अवस्था में बहुत प्रसन्न हूँ इसलिये मुझको क्षमा करो" पर अंत में उसको अपनी मर्जी के उपरांत बड़ों की आज्ञा से राजगद्दी पर बैठना पड़ा परंतु दस दिन नहीं बीते इतने में मेरी ने पकड़ कर उसे कैद किया और उसके पति समेत फांसी का हुक्म दिया . वह फांसी के पास पहुँची उस समय उसने अपने पति को लटकते देख कर तत्काल अपनी याददाश्त में यह तीन वचन लैटिन यूनानी, और अंग्रेजी में क्रम लिखे कि "मनुष्य जाति के न्याय ने मेरी देह को सजा दी परंतु ईश्वर मेरे ऊपर कृपा करेगा, और मुझ को किसी पाप के बदले यह सज़ा मिली होगी तो अज्ञान अवस्था के कारण मेरे अपराध क्षमा किये जायेंगे. और मैं आशा रखती हूं कि सर्व शक्तिमान परमेश्वर और भविष्यत काल के मनुष्य मुझ पर कृपा दृष्टि रखेंगे” उसने फांसी पर चढ़कर सब लोगों के आगे एक