कारज को अनुबंध लख अरु, उत्तरफल चाहि×
पुन अपनी सामर्थ्य लख करै कि न करे ताहि।
विदुरप्रजागरे.
सवेरे ही लाला मदनमोहन हवा ख़ोरी के लिये कपड़े पहन रहे थे. मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल आ चुके थे.
“आजकल में हमको एक बार हाकिमों के पास जाना है। लाला मदनमोहन ने कहा.
“ठीक है, आपको म्युनिसिपेलिटी के मेम्बर बनाने की रिपोर्ट हुई थी उसकी मंजूरी भी आ गई होगी” मुन्शी चुन्नीलालबोले.
“मंज़री में क्या संदेह है? ऐसे लायक़ आदमी सरकार को कहां मिलेंगे?” मास्टर शिंभूदयालने कहा.
“अभी तो (खुशामद में) बहुत कसर है! साइराक्यूस के सभासद डायोनिस्यस का थूक चाट जाते थे और अमृत से अधिक मीठा बताते थे” लाला ब्रजकिशोर ने कमरे में आते-आते कहा. “यों हर काम में दोष निकालने की तो जुदी बात है पर
× अनुबन्धं च संप्रेक्ष्य विपाकं चैंवकर्म्मणाम्॥
उत्थान मात्मन श्चैव धीर: कुर्वीत वा नवा॥