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परीक्षा गुरु
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अमीरों को ऐश के सिवाय और क्या काम है?” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.


"राजनीति में कहा है "राजा सुख भोगहि सदा मंत्री करहि सम्हार॥ राजकाज बिगरे कछू तो मंत्री सिर भार।" पंडित पुरुषोत्तमदास बोले.


“हां यहां के अमीरों का ढंग तो यही है, पर यह ढंग दुनिया से निराला है. जो बात सब संसार के लिये अनुचित गिनी जाती है वही उनके लिये उचित समझी जाती है! उनकी एक-एक बात पर सुननेवाले लोट-पोट हो जाते हैं! उनकी कोई बात हिकमत से खाली नहीं ठहरती! जिन बातों को सब लोग बुरी जानते हैं, जिन बातों के करने में कमीने भी लजाते हैं, जिन बातों के प्रकट होने से बदचलन भी शर्माते हैं, उनका करना यहां के धनवानों के लिये कुछ अनुचित नहीं है! इन लोगों को न किसी काम के प्रारंभ की चिन्ता होती है! न किसी काम के परिणाम का विचार होता है! यहां के धनपति तो अपने को लक्ष्मी पति समझते हैं परंतु ईश्वर के यहां का यह नियम नहीं है उस्ने अपनी सृष्टि में सब गरीब अमीरों को एक-सा बनाया है” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “जो मनुष्य ईश्वर का नियम तोड़ेगा उसको अपने पाप का अवश्य दंड मिलेगा. जो लोग सुख भोग में पड़ कर अपने शरीर या मन को कुछ परिश्रम नहीं देते प्रथम तो असावधान्ता के कारण उनका वह वैभव ही नहीं रहता और रहा भी तो कुदरती कायदे के मूजिब उनका


भोग्यस्य भाजनं राजा मन्त्री कार्यस्य भाजनम्॥ राजकार्यपरिध्वंसी मंत्री दोषेण लिप्यते॥