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मित्रमिलाप
 


मोनियम बाजा, अंटा खेलने की मेंज, अलबम्, सैरबीन, सितार और शतरंज वगैरह मन बहलाने का सब सामान अपने-अपने ठिकाने पर रखा हुआ था. दिवारों पर गच के फूल पत्तों का सादा काम अबरख की चमक से चांदी के डले की तरह चमक रहा था और इसी मकान के लिये हजारों रुपये का सामान हर महीनें नया ख़रीदा जाता था.


इस समय लाला मदनमोहन को कमरे में पांव रखते ही विचार आया कि इसके दरवाजों पर बढ़िया साठन के पर्दे अवश्य होने चाहिये. उसी समय हरकिशोर के नाम हुक्म गया कि तरह-तरह की बढ़िया साठन लेकर अभी चले आओ, हरकिशोर समझा कि "अब पिछली बातों के याद आने से अपने जी मैं कुछ लज्जित हुए होंगे. चलो सवेरे का भूला सांझ को घर आ जाय तो भूला नहीं बाजता" यह विचार कर हरकिशोर साठन इकट्ठी करने लगा पर यहां इन बातों की चर्चा भी न थी.यहां तो लाला मदनमोहन को लाला हरदयाल की लौ लग रही थी. निदान रोशनी हुए पीछे बड़ी देर बाट दिखाकर लाला हरदयाल आये. उनको देखकर मदनमोहन की खुशी कुछ हद नहीं रही, बग्गी के आने की आवाज़ सुनते ही लाला मदनमोहन बाहर जाकर उनको लिवा लाए और दोनों कौंच पर बैठ कर बड़ी प्रीति से बातें करने लगे.


"मित्र तुम बड़े निष्ठुर हो मैं इतने दिनों से तुम्हारी मोहनी मूर्ति देखने के लिये तरस रहा हूँ पर तुम याद भी नहीं करते।" लाला मदनमोहन ने सच्चे मन से कहा.


“मुझको एक पल आपके बिना कल नहीं पड़ती पर क्या