हम करेंगे" निदान लाला मदनमोहन इन बग्गियों को देखभाल कर वहां से आगे हसनजान के तबेले में गये और वहां तीन घोड़े पांच हजार पांच सौ रुपये में ले करके वहां से सीधे अपने बाग़ 'दिलपसंद’ को चले गये.
यह बाग सब्ज़ी मंडी से आगे बढ़ कर नहर की पटरी के
किनारे पर था इसकी रविशों के दोनों तरफ रेलिया की कतार, सुहावनी क्यारियों में रंग-रंग के फूलों की बहार, कहीं हरी-हरी घास का सुहावना फर्श, कहीं घनघोर वृक्षों की गहरी छाया, कहीं बनावट के झरने और बेट, कहीं पेड़ और टट्टियों पर बेलों की लपेट एक तरफ़ को संगमरमर के एक कुंड में तरह-तरह के जलचर अपना रंग-ढंग दिखा रहे थे. बाग के बीच में एक बड़ा कमरा हवादार बहुत अच्छा बना हुआ था उसके चारों तरफ़ संगमरमर का साईवान और साईवान के गिर्द फव्वारों की कतार लगी थी. जिस समय ये फव्वारे छटते थे, जेठ बैसाख को सावन भादों समझ कर मोर नाच उठते थे. बीच के कमरे में रेशमी ग़लीचे की बड़ी उम्दा बिछायत थी और बढ़िया साठन की मढी हुई सुनहरी कौंच, कुर्सियाँ जगह-जगह मौके से रखी थीं. दीवार के सहारे संगमरमर की मेजों पर बड़े-बड़े आठ कांच आमने- सामने लगे हुए थे. छत में बहुमूल्य झाड़ लटक रहे थे, गोल बैज़ई और चौखूटी मेंजों के गुलदस्ते हाथीदांत, चंदन, आबनूस, चीनी, सीप और कांच वगैरह के उम्दा-उम्दा खिलौने मिसल से रखे थे, चांदी की रकेबियों में इलायची सुपारी चुनी हुई थी. समय, तारीख, वार, महीना, बताने की घड़ी, हार-