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परीक्षागुरू
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"किसी मनुष्य की रीत भांति सुधरे बिना उस्सै आगे को काम नहीं लिया जासक्ता परन्तु जिन लोगों का सुधारना अपने बूते सै बाहर हो उन्नै काम काजका संबंध न रखना ही अच्छा है और जब किसी मनुष्य सै ऐसा संबंध न रक्खा जाय तो उस्के सुधारने का बोझ सर्व शक्तिमान परमेश्वर अथवा राज्याधिकारियों पर समझ कर उस्सै देष और बैर रखनें के बदले उस्की हीन दशा पर करूणा और दया रखनी सजनों को विशेष शोभित करती है" लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.

“मेरी मूर्खता से मुझपर जो दुख पडना चाहिये था पडचुका अब अपना झूटा बचाव करनें सै कुछ फायदा नहीं मालूम होता मैं चाहता हूँँ कि सब लोगों के हित निमित्त इन दिनोंका सब बृत्तान्त छपवा कर प्रसिद्ध कर दिया जाय” लाला मदनमोहननें कहा.

“इस्की क्या जरूरत है? संसार मैं सीखनें वालों के लिये बहुत सै सत्शास्त्र भरे पड़े हैं” लाला ब्रजकिशोरने अपना संबंध विचार कर कहा.

"नहीं सच्ची बातों में लजानें का क्या काम है? मेरी भूल प्रगट हो तो हो मैं मन सै चाहता हूँँ कि मेरा परिणाम देखकर और लोगों की आंखैं खुलैं इस अवसर पर जिन, जिन लोगों सै मेरी जो, जो बात चीत हुई है वह भी मैं उस्मै लिखनें के लिये बता दूंंगा" लाला मदनमोहननें उमंगसै कहा.

"धन्य! लालासाहब! धन्य! अब तो आपके सुधरे हुए बिचार हद्द के दरजे पर पहुंच गए" लाला ब्रजकिशोरनें गद्गद बाणी सै कहा "औरोंके दोष देखनें वाले बहुत मिल्ते हैं, प्ररन्तु