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परीक्षागुरु.
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सुधरने की रीति.
कठिन कलाहू आाय है करत करत अभ्यास॥
वृद.
लाला मदनमोहन बड़े आश्चर्य मै थे कि यह क्या भेद है। जगजीवनदास यहां इस्समय कहां सै आए? और आए भी तो उन्के कहनें सै पुलिस कैसे मान गई! क्या उन्हों नें मुझको हवालात सै छुडानें के लिये कुछ उपाय किया? नहीं उपाय करनें का समय अब कहां है? और आते तो अब तक मुझसै मिले बिना कैसे रह जाते?
इतनें मैं दूर सैं एका एक प्रकाश दिखाई दिया और लाला ब्रजकिशोर पास आ खड़े हुए
“हैं! आप इस्समय यहां कहां! मैंनें तो समझा था कि आप अपनें मकान मैं आराम सै सोते होंगे" लाला मदनमोहन नें कहा.
"यह मेरा मन्द भाग्य है जो आप ऐसा समझते हैं क्या मुझ को भी आपनें उन्हीं लोगों मैं गिन लिया?" लाला ब्रजकिशोर बोले.
"नहीं, मैं आप को सच्चा मित्र समझता हूं परन्तु समय आए बिना फल नहीं होता"