पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२९७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८७
प्रेत भय.
 


हो आए, जी दहल गया और मोत की कल्पना शक्ति नें अपना चमत्कार दिखाना शुरू किया.

कोई प्रेत उनकी कोठरी मैं मोजूद है उस्के चलनें फिरनें की आवाज सुनाई देती है बल्कि कभी, कभी वह अपनी लाल, लाल आंखों सै क्रोध करके मदनमोहन को पुरकता है, कभी अपनर मट्टीसा ह फला कर मदनमोहन की तरफ दौडता है, कभी गुस्सेसै दांत पीस्ता है, कभी अपना पहाडसा शरीर बढाकर मदनमोहन को पीस डाला चाहता है कभी कानके पर्दे फाड डालनें वाले भयंकर स्वरसै खिल खिलाकर हंस्ता है, कभी नाचते है, कभी गाता है, कभी ताली बजाता है, और कभी जम दूत की तरह मदनमोहन को उस्के कुकर्म्मों के लिये अनेक तरहके दुर्बचन कहता है! लाला मदनमोहननें पुकारने का बहुत उपाय केया परन्तु उन्के मुखसै भयके मारे एक अक्षर न निकल सका वह प्रेत मानों उनकी छातीपर सवार होकर उन्का गला घोटनें लगा उस्के भयसै मदनमोहन अध मरे हौगए उन्होनें हाथ पांव चलानें का बहुत उद्योग किया परन्तु कुछ न हो सका इस्समय लाला मदनमोहन को परमेश्वर की याद आई.

जो मदनमोहन परमेश्वर की उपासना करनें वालों को और धर्मकी चर्चा करनें बालोंको नास्तिक भावसै हंसा करता था। और मनुष्य देह का फल केवल संसारी सुख बताता था किसी तरह सै छल छिद्र करकै अपना मतलब निकाल लेनें को बुद्धिमानी समझता था वही मदनमोहन इस्लमय सब तरफझे निराश होकर ईश्वर की सहायता मांगता है! हा! आज इस रंगीले जवानकी क्या दशा हो गई! इस्का अभिमान कहां जाता रहा!