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प्रेत भय.
 


मदनमोहन का व्याकुल चित अधिक, अधिक अकुलानें लगा.

इसी बिचार मैं सन्ध्या हो गई चारों तरफ़ अंधेरा फैल गया। मकान मनुष्य शून्य होगया आस पास की सब चीज़ें दिखनी बन्द हो गईं.

लाला मदनमोहन के मानसिक विचारों का प्रगट करना इस्समय अत्यन्त कठिन है जब वह अपनें बालकपन सै लेकर इस्समय तक के वैभव का विचार करता है तो उस्की आंखों के आगे अन्धेरा आ जाता है! लाला हरदयाल आदि रंगोले मित्रों की रंगीली बातें, चुन्नीलाल, शिंभूदयाल आदि की झूंटी प्रीति, रात के एक, एक बजे तक गानें नाचनें के जल्से, खुशामदियों का आठ पहर घेरे रहना, हर बात पर हां मैं हां, हर बात पर वाह वाह, हर काम मैं प्राण देने की तैयारी के साथ अपनी

इस्समय की दशा का मुक़ाबला करता है और उन लोगों की इन दिनों की कृतघता पर दृष्टि पहुंंचाता है तो मन मैं दुःख की हिलोरें उठने लगती हैं! संसार केवल धोके की टट्टो मालूम होता है जिन्के ऊपर अपनें सब कार्य व्यवहार का आधार था, जिन्को बारंबार हज़ारों रुपये का फायदा कराया गया था, जो हर बात मैं पसीनें की जगह ख़ून डालनें को तैयार रहते थे वह सब इस्समय कहां हैं? क्या उन्मैं सै इस थोड़े से कर्ज को चुकानें के लिये कोई भी आगे नहीं आ सक्ता? जिन्की झूटी प्रीति मैं आ कर अपनी प्रतिव्रता स्त्री की प्रीति भूल गया, अपनें छोटे, छोटे बच्चों के लालन पालन का कुछ बिचार नहीं किया वह मुफ्त मैं चैन करनेंवाले इस्समय कहां हैं?

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