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बिपतमैं धैर्य.
 

अपनें स्वरूप जान्नें मैं भूल रह जायगी तो धर्म अधर्म हो जायगा और व्यर्थ दुःख उठाना पड़ेगा. विपत्तिके समय घबराहटकी बराबर कोई बस्तु हानिकारक नहीं होती बिपत्ति भंवर के समान है जों, जों मनुष्य बल करके उस्सै निकला चाहता है अधिक फंसता है और थक कर बिबस होता जाता है परन्तु धैर्य से पानी के बहावके साथ सहज मैं बाहर निकल सक्ता है. ऐसे अवसर पर मनुष्य को धैर्य सै उपाय सोचना चाहिये और परमदयालु भगवान की कृपा दृष्टि पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिये उस्को सब सामर्थ है"

"यह सब सच है परन्तु विपत्तिके समय धैर्य नहीं रहता" लाला मदनमोहन में आंसू भर कर कहा.

"बिपत्ति मनुष्य की कसोटी है नीति शास्त्र में कहा है "दूरहि सों डरपत रहैं निकट गए तें शूर। बिपत पड़े धीरज गहैं सज्जन सब गुण पूर॥*[१]" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "महाभारत मैं लिखा है कि राजा बलि देवताओं से हार कर एक पहाड की कन्दरा मैं जा छिपे तब इन्द्र नें वहां जाकर अभिमान सै उन्को लज्जित करनें का बिचार किया इस्पर बलि शान्तिपूर्वक बोले "तुम इस्समय अपना बैभव दिखाकर हमारा अपमान करते हो परन्तु इस्मैं तुह्मारी कुछ भी बड़ाई नहीं है हारे हुए के आगे अपनी ठसक दिखानें सै पहली निर्बलता मालूम होती है जो लोग शत्रुको जीत कर उस्पर दया करते हैं वही सच्चे वीर समझे जाते हैं. जीत और हार, किसी के हाथ नहीं है यह दोनों सम-


    • महतो दूरभीरुत्व मासन्ने शूरता गुणः।

    विपत्तौ हि महांल्लोके धीरता मनुगच्छति।